राजनीती और उम्मीद?
किसी भी सरकार के बदलने से कितना फर्क पड़ता है? आप क्या सोचकर वोट देते हैं? मैंने तो वैसे वोट डालनी 2019 (?) से ही छोड़ी हुई है। खासकर, जबसे पता चला है की वोट कहाँ और कैसे डलती हैं। आपको अभी तक भी नहीं पता? इसलिए मैं तो अपनी वोट ऑनलाइन ही डाल देती हूँ, अपनी भड़ास निकाल कर। मेरी वोट, किसी पार्टी को नहीं, बल्की कैंडिडेट को जाती है।
जिसे मैं नहीं जानती, उसे नहीं जाती।
जिसके उल्टे-पुल्टे कामों का पता होता है, उसे भी नहीं जाती।
उल्टे-पुल्टे कामों वाले का कोई बेटा, बेटी, बहु या कोई भी रिस्तेदार अगर उठा हुआ है, और उसने ना कोई खास उल्टे-पुल्टे और ना ही ठीक-ठाक काम किए हुए, तो उसे भी नहीं जाती।
जो सिर्फ इलेक्शन के वक़्त कहीं से भी आ टपकता है, उसे तो बिल्कुल ही नहीं जाती।
पिछले कुछ एक सालों में किस नेता ने कितना कमाया है? कहाँ-कहाँ से और कैसे? और आम लोगों पर कितना खर्च किया है? कहाँ-कहाँ और कैसे? अगर जनता की सेवा का ही किसी नेता को शौक नहीं है, तो अपने ऊप्पर राज करवाने के लिए, जनता उसे क्यों बनाए? इलेक्शन का इतना तामझाम और तमाशा क्यों?
किसी ने आपका थोड़ा बहुत बुरा किया हुआ है। वो भी सीधे-सीधे नहीं, उसके किन्हीं आदमियों ने? मगर, जनता का किसी भी तरह भला कर रहा है, वो भी अपने पैसे फूँककर? हो सकता है, पैसे भी सिर्फ दिखने में अपने हों? कोई नहीं, अंधों में काना राजा तो फिर भी लग रहा है ना? अपना भला खुद कर लो। सबका भला कौन, कहाँ कर पाता है ना?
या नोटा सही है?
आप क्या सोचकर वोट डालते हैं?
आगे किसी पोस्ट में थोड़ा-बहुत और मिलेगा, पार्टियों और उनके कुछ-एक नेताओं पर।
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