About Me

Happy Go Lucky Kinda Stuff! Curious, atheist, lil-bit adventurous, lil-bit rebel, nature lover, sometimes feel like to read and travel. Writing is drug, minute observer, believe in instinct, in awesome profession/academics. Love my people and my pets and love to be surrounded by them.

Saturday, September 7, 2024

संसाधनों का प्रयोग या दुरुपयोग (Use and Abuse) 28

सोचो आपसे कोई नुकसान जान-बूझकर करवाए और उसका हर्ज़ाना या खामियाज़ा भी आपसे ही भरवाए? अब वो नुकसान आपकी जानकारी से भी हो सकता है और अज्ञानता में भी? नुकसान चाहे कोई खास ही ना हुआ हो, मगर आप उसका खामियाज़ा किसी बीमारी या मौत तक भरें? हकीकत में ऐसा, संभव है क्या?  

आसपास ऐसा ही कुछ देखा, सुना या समझा।   

किसी की सफ़ेद जीन्स के धागे निकालना और सफ़ेदी भुगतना? 

आपने कहीं कोई जीन्स थोड़ा आल्टर करने को दी। वो बहुत दिनों वहीं पड़ी रही और आल्टर भी नहीं की गई। मगर कहीं से उसके कुछ धागे जरुर निकाल दिए गए? उसके काफी वक़्त बाद आपको कहीं से बताया जाए की उसे (टेलर को) तो ये बीमारी हो रखी है। ऐसी कोई बीमारी होती है क्या? या किसी नैचुरल प्रोसेस को कुछ खास तरीकों से बढ़ाया या घटाया जा सकता है? और जीन्स या कोई भी कपड़ा आना-जाना है। ऐसे-ऐसे बहानों से भी लोगों को क्या बीमार करना? 

मगर ये दो धारी तलवार है, जिसे राजनीतिक सामांतर घड़ाईयाँ कहते हैं। मुझे कुछ-कुछ ऐसा ही समझ आया।  ऐसी-ऐसी घड़ाईयाँ देख, सुन या समझ कर ऐसा लगेगा, की ये राजनीती के कलाकार कर क्या रहे हैं?    

चौराहे पे पांह आना और किसी का अबॉरशन होना जैसे? कैसा चौराहा और कैसा अबॉरशन भला? रीती-रिवाज़, अंधविश्वास और? ज्ञान-विज्ञान और सर्विलांस एब्यूज का रौचक मिश्रण?   

ऐसी-ऐसी और भी कई सारी अजीबोगरीब बीमारियाँ सामने आई। जिन्हें सुनकर या समझकर ये लगेगा की ये बीमारियाँ हैं? या इंसान इन राजनीतिक पार्टियों के लिए महज़ एक नंबर या कोड कोई? इसके इलावा कुछ भी नहीं?  

किसी खास तारीख को पीलिया शुरु होना और चने खाने शुरु करवाना? ऐसे-ऐसे कुछ और बहुत ही आम-से रोजमर्रा के खाने-पीने शुरु होना और in enforcement को बढ़ाना जैसे? साथ में टीवी, लैपटॉप प्रोग्राम्स का भी खास दिशा में बढ़ना और उसके साथ-साथ स्कूल के खास प्रोग्राम्स भी? देखा जाए तो, सबकुछ जैसे नैचुरल-सा है। मगर, सिर्फ टीवी प्रोग्राम्स के कॉन्टेंट या स्कूल के खास प्रोग्राम्स पे ही, थोड़ा-सा भी ध्यान दिया जाए तो? अदृश्य तरीकों से जबरदस्त दिमागी बदलावों की तरफ ईशारा जैसे? 

Mind Programming and subtle manipulations?  

कुछ-कुछ ऐसे ही जैसे, किसी पेड़-पौधे को थोड़ा-सा ही कोई सहारा देकर या हटाकर, मनचाही डायरेक्शन देना? जितना कमजोर या अपरिपक्कव पौधा होगा, उतना-ही आसान होगा। माहौल बनाना या किसी भी जीव के इर्द-गिर्द, किसी खास तरह का सिस्टम क्रिएट करना। 

System Creation, like some lab experimentation.   

तो शायद यूँ ही नहीं बोला जाता की जितना ज्यादा हराभरा, फलता-फूलता, सुन्दर और समृद्ध बाग़ होगा, उतना ही समझदार, जानकार और रखवाला उसका मालिक या माली होगा। अक्सर वो बाग़ या घर सबसे पहले उजड़ते हैं, जिनका कोई रखवाला नहीं होता। 

या आज के युग में खासकर, माली होते हुए भी ना के बराबर जैसे? या अपने या अपनों के खिलाफ ही कर दिए जाएँ जैसे? आज के युद्धों में ऐसे लोग सबसे पहले सामने वाले की गुप्त घड़ी गई सेनाओं के हिस्से होते हैं। मतलब, उन्हें खुद तक को पता नहीं होता, की तुम्हें प्रयोग या दुरुपयोग कौन, कैसे और क्यों कर रहा है? अक्सर आप जो बीमारियाँ भुगत रहे होते हैं, असल में वो बीमारी होती ही नहीं। आपकी अज्ञानता का दुरुपयोग, थोड़े पढ़े-लिखे और कढ़े ज्ञानी लोग आपके ही खिलाफ कर रहे होते हैं। अक्सर छोटी-मोटी जो बीमारियाँ या बीमारियों जैसे-से लक्षण होते हैं, उनके इलाज घर ही हो जाते हैं। ऐसी-ऐसी बिमारियों के बहाने, अगर आप हॉस्पिटल गए, तो वहाँ से जरुर किसी ना किसी बीमारी की शुरुवात हो जाती है। कई बार, बहुत-सी ऐसी दवाईयाँ भी दे दी जाती हैं या ऐसे ईलाज भी कर दिए जाते हैं, जो किसी Catalyst की तरह कोई ना हुई बीमारी के तेजी से पनपने का कारण बन जाएँ और देखते ही देखते, ज़िंदगी जैसे आपकी आँखों के सामने ही खिसकती नज़र आए। हकीकत जब पता चले तो लगे, अरे, ये तो होना ही नहीं था। आज वो इंसान शायद ज़िंदा होता या होती?  

अभी आसपास कुछ मौतों से जो समझ आया, वो कुछ-कुछ ऐसा ही था। 

बिमारियों के या मौतों के भी कितने केस हैं, ऐसे-ऐसे आसपास ही? शायद धीरे-धीरे आपको भी पता चलेगा की हुआ क्या था? 

भड़कावे? 

एक दूसरे पे छींटाकशी ?

किसी के कहने भर से किसी को नीचा दिखाने की कोशिशें?

या गलत करना या गलत करने की कोशिशें। चाहे कितना ही छोटा-मोटा ही सही। 

और खुद ही उनके बड़े-बड़े से अंजाम भुगतना? वो गलत कहलवाने वाले या बुलवाने वाले या करवाने वाले, खुद आपके साथ भी बुरा कर रहे होते हैं। नहीं तो, वो खामखाँ-सी बिमारियों के राज या हकीकत क्यों नहीं बताते आपको? क्यों नहीं बचाते, जहाँ उन्हें बचाना चाहिए? खासकर, जिनके भडकावों पर आप किसी को कितना कुछ उल्टा-सीधा सुना, दिखा या उनके बारे में कहीं कह देते हो? क्यूँकि, वो किसी के नहीं हैं। अपनी पार्टियों के नंबरों के खेलों या कुर्सियों के सिवाय? नहीं तो क्या कहेंगे, ऐसे लोगों के बारे में आप? 

कुछ ऐसे से ही केस ईधर-उधर से ही आगे किन्हीं पोस्ट में।    

No comments: