मान लो आपको किसी ने घर से निकाल दिया या परेशान होकर आप खुद ही छोड़ आए। वो घर, आपका अपना भी हो सकता है, ससुराल का भी और कोई सरकारी मकान भी।
आप छोटे-मोटे, रोज-रोज के लड़ाई-झगड़ों से बचने के लिए और अपनी या अपने बच्चे की शांति और समृद्धि के लिए छोड़ आए हों या जबरदस्ती किसी भी तरीके से निकाल दिए हों, तो क्या करेंगे? अपने माँ-बाप या किसी रिस्तेदार या दोस्तों के घर रहने लगेंगे? मगर कब तक? और क्यों? आपका अपना घर क्यों नहीं हो, जहाँ किसी की औकात ना हो, आपको निकालने की या ऐसा कुछ अहसास करवाने की, की ये घर आपका नहीं है?
उसके लिए पैसे चाहिएँ, शायद वो नहीं हैं आपके पास, जिस किसी वजह से? शायद होते हुए भी ना हों? किसी ने कब्ज़ा किया हुआ है उसपर, खास आपको कंट्रोल करने के लिए? खेल ही सारा कंट्रोल का है। जाने कैसे लोग, किसी दूसरे की ज़िंदगी का कंट्रोल चाहते हैं? वो कोई सास-ससुर, पति, नन्द भी हो सकते हैं। और कोई और, किसी भी तरह के रिस्तेदार भी। या सरकारी माई-बाप भी? आप जिस चीज़ से परेशान हैं, कहीं वही सब ये राजनीतिक पार्टियाँ, आपको भी तो नहीं सिखा रही?
आप किसी के अनचाहे कंट्रोल से परेशान हैं? वही ये राजनीतिक पार्टियाँ, आपको सिखा रही हैं? और आपको समझ तक नहीं आ रहा? और कुछ केसों में तो ऐसा है, की सारा पैसा भी सामने वाले के कंट्रोल में नहीं है। अपना घर बनाने लायक, आपके पास पैसा है या ऐसा कोई जुगाड़ हो सकता है? हमारे पारम्परिक बुजर्गों ने तो नहीं रोक दिया कहीं आपको? आप क्या करोगे घर का? ससुराल वाले कब तक रखेंगे ऐसे? या माँ-बाप का घर तो आपका ही है ना? चलो मान लिया। फिर भी अगर, एक आपका घर या कोई ज़मीन-जायदाद आपके नाम भी हो जाए, तो बुराई क्या है? बाप, भाई, पति या बेटे के नाम ही घर या ज़मीन-जायदाद क्यों हो? क्या हो, अगर वो आपके नाम भी हो तो? आधी दादागिरी या निकल मेरे घर से की ऐंठ तो, वहीं खत्म। वो खत्म, तो ज्यादातर लड़ाई-झगड़े भी। अगर ये सब करने भर से ज्यादातर लड़ाई-झगड़े खत्म हो रहे हों, तो इसका मतलब क्या है? सामने वाला लालची है। उसे इंसान या रिश्तों की कदर नहीं है, सिर्फ प्रॉपर्टी, पैसे और जमीन-जायदाद की है। तो ऐसे लालची इंसान से अपना हिस्सा लेने में कैसी दिक्कत और क्यों? यहाँ पे भी हमारे घोर पारम्परिक, शायद ये कहें, अरे तुम क्या करोगे लेकर? बच्चों के नाम करवा दो? तो एक कदम और आगे बढ़ाओ। बच्चों के भी और अपने नाम भी क्यों नहीं?
जो खाते-पीते घर का होने का दावा करते हैं, तो क्या उन्हें ये नहीं मालूम की खाते-पीते घरों में तो प्रॉपर्टी सबके नाम होती है। क्या बेटा, क्या बेटी, क्या भाई या बहन फिर? अब आप इसलिए तो चुप नहीं हो गए, की ऐसे तो बुआ की भी बनती है। माँ की भी और बेटी की भी। और पति की भी बहन या बहनें हैं? कितने दोगले हैं आप भी? खैर। आपको अपना घर फिर भी बनाना चाहिए। अगर आपके पास किसी भी तरह का पैसा या ज़मीन जायदाद है या कोई नौकरी है, तो वो बहुत मुश्किल नहीं। आज के वक़्त में खासकर, अपनी इज्जत करवाना चाहते हो, तो बंध करो बहुत वक़्त किसी के भी घर रहना या किराए के घर में रहना। हाँ। अगर सरकारी मकान है, तो शायद, बात अलग हो सकती है। क्यूंकि, उसके लिए HRA मिलता है। और किराए के रुप में जो देना पड़ता है, वो कोई खास नहीं होता।
वैसे पक्षी, जानवर तक अपने बच्चों को अपना घर बनाना और कम से कम अपने लिए कमाना तो सीखा ही देते हैं। इंसान, वो भी नहीं सीखा पाता क्या? इसका मतलब, वहाँ के सामाजिक ताने-बाने में कंट्रोल की भावना हद से ज्यादा है। और समाज को कंट्रोल करने वाले ये ठेकेदार नहीं चाहते, की लोग उनके कंट्रोल से बाहर अपनी ज़िंदगियाँ जिएँ। कुछ तो ऐसे-ऐसे महान भी हैं, जिन्होंने अपनी बहनों या बेटिओं और माओं तक के नाम प्रॉपर्टी करवाई हुई है और दूसरों को ज्ञान पेल रहे हैं, अरे तुम क्या करोगे?
देखने समझने में जो आया वो ये, की कुछ-कुछ ऐसे ही अखाड़े, आसपास की बहुत-सी बिमारियों और मौतों तक का कारण बने, या कहो की जबरदस्ती जैसे, बना दिए गए।
जबरदस्ती भला कैसे? जानते हैं आगे
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