आभाषी?
कहानी?
कोई स्क्रीप्ट?
इंसान या रोबॉट?
फाइलों तक समान्तर घड़ाईयाँ घड़ना आसान है। मगर, लोगों को किसी कहानी-सा ढालना, मतलब रोबोट बनाना? कितना आसान या मुश्किल होगा?
सर्विलांस एब्यूज की लोगों को रोबॉट बनाने में बहुत बड़ी भूमिका है। जैसे आप किसी वक़्त क्या कर रहे हैं? क्या कह या सुन या देख रहे हैं? क्या खा रहे हैं या पढ़ रहे हैं? जाग रहे हैं, या सो रहे हैं? किसके साथ हैं? उनसे क्या बात हो रही है? हग रहे हैं, मूत रहे हैं, नहा रहे हैं? पसीना तो नहीं आया हुआ? आया हुआ है, तो कितना? साँस सही चल रही है, या हाँफ रहे हैं? आपका तापमान कितना है? आपका वज़न कितना है? शरीर या दिखने में कैसे हैं? आपको कोई बीमारी है? कबसे? इलाज कहाँ से ले रहे हैं? और इलाज क्या हो रहा है, दवाईयाँ सिर्फ या ऑपरेशन? और भी कितनी ही चीज़ें, जो शायद आप खुद अपने बारे में या आसपास वालों के बारे में नोट नहीं करते या आपको नहीं मालूम, ये एक्सट्रीम सर्विलांस का जहाँ रिकॉर्ड करता है। सिर्फ नोट नहीं करता, बल्की रिकॉर्ड करता है। और इंसान की मौत के बावजूद, उस रिकॉर्ड को पैसे बनाने और कुर्सियों की वर्चव लड़ाई तक में प्रयोग करता है। आप भी रखते हैं क्या ऐसी कोई रिकॉर्डिंग अपने पास? आप तो शायद, अपना या अपनों का मेडिकल रिकॉर्ड तक नहीं रखते? ये एक्सट्रीम सर्विलांस एब्यूज वाले वो रिकॉर्डिंग ऐसे रखते हैं, वो भी परमानैंट। और जहाँ भर में कितनी ही कम्पनियाँ या पार्टियाँ रखती हैं। वो सरकारी भी हैं और प्राइवेट भी। सिविल भी हैं और डिफेन्स वाली भी। और वो सब समाज को कोई दिशा या दशा देने का काम करती हैं। उनमें बहुत कुछ टारगेटेड होता है। जितना इन सबके बारे में आपको नहीं पता, उतना ही आसान टारगेट हैं आप। सोचो, आप आम होते हुए भी कितने अहम हैं, इन एक्सट्रीम सर्विलांस एब्यूज वाली कंपनियों या पार्टियों के लिए? ये लोग, गरीब से गरीब इंसान से भी पैसा कमाते हैं। वो भी उसकी जानकारी के बिना। उसके गोबर, मूत, पसीने तक का रिकॉर्ड रखते हैं। क्यूँकि, वो स्वास्थ्य से जुडी और कितनी ही रोजमर्रा के काम में आने वाले उत्पादों का बहुत बड़ा बाजार है। इस जानकारी के आधार पर, ये कम्पनियाँ कितने ही ऐसे उत्पाद बाजार में उतारती हैं जो आपके स्वास्थ्य को लाभ नहीं नुकसान करते हैं। आपकी ज़िंदगी मुश्किल करते हैं। आपके संसाधनों को खत्म करने का काम करते हैं। और इसी जानकारी का दोहन कर, वो प्रचार-प्रसार ऐसे करते हैं, जैसे, गंजे को कंघी बेचना।
कैसे?
चलो छोटे-छोटे से रोजमर्रा के उदहरण लेते हैं।
आप सो रहे हैं और आपके घर के बाहर आके कोई गाय या कुत्ता या बिल्ली या कबूतर सुस्ता रहे है, किसी पार्टी के खास डिजाइनिंग के हिसाब से।
आपने किसी सफ़ेद जीन्स और किसी को कोई सफेदी नाम की so-called बीमारी के बारे में कुछ लिखा है। मगर अभी वो ड्राफ्ट में ही है। पब्लिश नहीं किया हुआ। और कोई खास किस्म की गाएँ, किसी खास घर के बाहर आकर बैठ गई, किसी पानी की टंकी के पास। या पड़ोस के खास नंबर और नाम के घर के बाहर, जो वहाँ रहते ही नहीं। वो भी ऐसी ही किसी खास physiological कंडीशन (सफेदी नाम की so-called बीमारी) में है। नेचुरल है या कुछ खिला-पिला के? दोनों ही सच हो सकते हैं। निर्भर करता है ये सब करवाने वाली पार्टी या पार्टियों की डिजाइनिंग के अनुसार। उस गाय को पता है? इंसानो तक को पता नहीं होता, की कब कोई फिजियोलॉजिकल कंडीशन नैचरल है और कब जाने कहाँ से और कैसे खिला-पीला के। पार्टियों की तारीखों और वक़्त के हिसाब पे निर्भर करता है। इसमें वो बच्चों और बुजर्गों तक को नहीं बक्शते।
आपको पीरियड शुरू हो रखे हैं और गंदे ब्लड स्टेंड पैड्स आपके सामने वाले बॉस के घर के बाहर साइड वाली ग्रीन बैल्ट वाली जगह पड़े हैं। ऐसा एक बार नहीं होता, बार-बार हो रहा है। इसी दौरान, यही पैड्स बिना ब्लड स्टेंड, किसी ऐसी जगह भी पड़े मिल सकते हैं, जिसका मतलब है, जब तक आपके पीरियड्स की ज़िंदगी है, कम से कम तब तक तो शादी नहीं होने देंगे। जगहों के नाम लिखना सही नहीं होगा शायद। ऐसा ही और कितनों के साथ कर रहे होंगे ये लोग? एक-आध ऐसा केस तो जरुर आसपास ही होगा।
आपको हल्का-फुल्का बुखार है या और कोई फिजियोलॉजिकल स्ट्रेस और आपसे कोई उसी से सम्बंधित गोली माँगने आती है। एक बार नहीं, कई बार ऐसे ही होता है। अगर वो इंसान किसी भी वजह से वहाँ नहीं है, तो वही गोली आपको आते-जाते कहीं रस्ते में दिख सकती है।
आपने कुछ पढ़ा है, कंप्यूटर या लैपटॉप पर नहीं, बल्की, किसी पेपर में और उसके बारे में कहीं कोई आर्टिकल लिखा हुआ है।
आपने खाना बनाया है और बहुत अच्छा नहीं बना। उसपे कहीं कोई कमेंट्री है, किसी नेशनल या इंटरनेशनल मीडिया में, उसी वक़्त।
आपने कुछ खाया है, ऐसे ही कुछ रुखा-सूखा सा और कहीं कोई विज्ञापन है, गायों को आजकल सूखा चारा मिलता है।
आपके यहाँ पानी खराब आ रहा है। दिल्ली या कहीं और की ऐसी ही खबर है।
आपके घर के बाहर किन्हीं खास तारीखों को कोई खास किस्म का और उम्र का खागड़ राम्भते हुए जा रहा है या घर के थोड़ा इधर या थोड़ा उधर खड़ा हो गया है। या रास्ता रोककर गली में टेड़ा बैठ गया है। ऐसे ही खास किस्म की और खास उम्र की गाएँ, खास तारीखों को कहीं दाना-पानी लेने आ रही हैं या आ रही है। वो कुछ खास तारीखों या महीनों तक ही वहाँ दिखाई देंगी। उसके बाद दूसरी किस्म या उम्र वाली गाओं या खागड़ों की खास पॉलिटिकल रैंप परेड जैसे शुरू हो जाएगी। क्या ये सब किसी एक को प्रभावित करेगा? नहीं, आसपास सबको। बच्चों और बुजर्गों तक को नहीं बक्सा जाएगा। ये सब अपने आप नहीं हो रहा। ये सब किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी की खास तौर पे लाई हुई हैं। उस पार्टी की तारीखें और वक़्त खत्म होते ही, वो वापस जहाँ से लाई गई थी, वहीं पहुँचा दी जाएँगी या मार दी जाएँगी या मर जाएंगी। इसमें हिन्दू, मुसलमान का कोई लेना-देना नहीं है। ये सब राजनीती के खूँखार खेल हैं और इंसानो का मानसिक दोहन। इसीलिए, जहाँ तक हो सके जानवरों को गलियों में ना रहने दें। या तो गौशालाओं में छोड़ आएँ या कहीं उनके रहने का इंतजाम करें। और ऐसे लोगों को पहचानकर उनपर करवाई। इससे जो पशुओं, कुत्ते, बिल्लिओं, बंदरों और कितनी ही तरह के जानवरों पर ऐसे-ऐसे अत्याचार कर रहे हैं, उनके मनसूबों पे रोक लगेगी। आप उन्हें एक-दो दिन या एक-दो महीना रोटी देकर कोई पुण्य नहीं कमा रहे। क्यूँकि, वो दो-दिन का दाना-पानी इस समस्या का समाधान नहीं है। बल्की, ऐसी भद्दी और बेहुदा राजनीती वालों के अत्याचारों का हिस्सेदार बनना है। जिनके दुष्परिणाम सामान्तर घड़ाईयोँ के रुप में आसपास के कितने ही लोग भुगतते हैं। रिश्तों की तोड़फोड़, बेवजह के लड़ाई-झगड़े, किसी एक माँ या बाप को खा जाना। बच्चों को छोटी-सी उम्र में अनाथ करना और हॉस्टलों या बुरे परिवेश के हवाले करना। लोगों को बच्चे पैदा ना होने देना या एक के बाद बंधे लगा देना। अबोरशंस, कम उम्र में ही किसी भी बहाने बच्चों को खत्म कर देना, बुजर्गों के हाल-बेहाल करना और भी कितना कुछ आसपास भुगतता है। और उन्हें अहसास तक नहीं होता, की ये सब वो गन्दी राजनीती की वजह से भुगत रहे हैं।
और भी कितना कुछ हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी से जाने कहाँ-कहाँ हो सकता है। दुनियाँ के इस कोने में भी और उस कोने में भी। वो भी उसी वक़्त या उसके कुछ वक़्त बाद।
हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी का कितना कुछ हमें याद नहीं रहता। या शायद हम नोटिस तक नहीं करते। मगर ये एक्सट्रीम सर्विलांस वाला जहाँ, वो सब ना सिर्फ नोटिस करता है, बल्की उसका रिकॉर्ड भी रखता है। लोगों के दुनियाँ से चले जाने के बाद भी। ऐसा करने से इस एक्सट्रीम सर्विलांस वाले जहाँ को मिलता क्या है? कंट्रोल। समाज पे कंट्रोल। और अपने फायदे वाली सोशल इंजीनियरिंग में सहायता। इसी जानकारी का प्रयोग या दुरुपयोग कर, लोगों की ज़िंदगियों को अपने मंसूबों के हिसाब से ढालता है। ये एक्सट्रीम सर्विलांस ही लोगों को रोबॉट बनाने का काम करता है।
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