इंसान और प्रॉपर्टी
जहाँ-जहाँ इंसान सिर्फ एक प्रॉपर्टी है। वहाँ-वहाँ, उतने ही ज्यादा इंसानों के बेहाल। सोचो, कोई कहे औरतें तो ज़मीन हैं हमारी? पुरुष के केस में भी हो सकता है वैसे तो। मगर ज्यादातर ऐसे झगड़े, औरतों को महज़ ज़मीन मानने के वालों के यहाँ ज्यादा हैं।
हर इंसान को सिर्फ इंसान ही समझा जाए, तो कितने ही लड़ाई-झगडे और बेवजह के वाद-विवाद तो वैसे ही ख़त्म हो जाएँगे। इंसान संसाधन हैं। बहुत बड़ा, कीमती और अनमोल संसाधन। उसको प्रॉपर्टी, ज़मीन या किसी भी तरह का उत्पाद बनाने से बचें। इंसानों का भाव-तोल करने से बचें। क्यूँकि, इंसानों का इससे बड़ा दुरुपयोग कुछ और हो ही नहीं सकता। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ और राजनीती यही सब कर रही हैं। वो भी आपकी जानकारी के बैगर। और प्रौद्योगिकी के इस युग में इन बड़ी-बड़ी कंपनियों ने तो उस संसाधन का और भी बेरहमी से दुरुपयोग करना शुरू कर दिया है। इंसान के शरीर के द्रव्यों, किर्यायों-प्रकिर्यायों तक के अध्ययन, रिकॉर्ड और उनमें अपने अनुसार हेरफेर के तरीके इज्जाद करके। वो टेक्नोलॉजी, जो इंसान के भले के नाम पर ईजाद की गई या हो रही है, वही इंसान को उपभोग की वस्तु मात्र मान कर बाजार के हवाले कर रही हैं। कितनी धंधा-बाज़ारू हैं ना ये कम्पनियाँ और ऐसी पॉलिटिक्स?
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